In Ram Charitra Manas, Sri Ram Charitra Manas (RCM) is adjudged a wonderful poetry on life of Sri Ram, written by Sh. Tulsidas and completed in 1633. It enlightens the ideals of family life, highest standards for king, husband, wife and brother. Besides, it gives explanations on devotion (Bhakti, भक्ति), Spiritual wisdom (Gyan, ज्ञान), Sacrifice (tyag, त्याग), Dispassion, Detachment (vairagia, वैराग्य), Illusion (Maya, माया), Delusion (Bhram, भ्रम), Infatuation (Moh, मोह) and morality (sadachar, सदाचार). Reference:
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1. In Ram Charitra Manas, Sri Ram has explained following nine auspicious characteristics of a saint to Sri Parsuram in Balkand: 1. Tranquillity (शम), 2. Restraint (दम), 3. Penance (तप), 4. Purity (शौच), 5. Forbearance (क्षमा), 6. Straight forwardness (सरलता), 7. Knowledge (ज्ञान), 8. Supreme knowledge (विज्ञान) and 9. Faith in god (आस्तिकता) 2. Sri Ram further, explained Narad ji about characteristics of saints when he meets him in dense forest of south, as under:
Reference: Ram Charitra Manas written by Tulsidas:
In Ram Charitra Manas, Sri Ram has explained to Sri Hanuman difference between Characteristics of saints and of wicked in uttarakand as under:
Characteristics of Saints
Characteristics of Impious / Wicked
Reference: Ram Charitra Manas written by Tulsidas: उत्तरकांड, 37 वे दोहे के बाद, 1 से 4 चौपाईया मे, 38 दोहा, - बिषय अलंपट सील गुनाकर। पर दुख दुख सुख सुख देखे पर।। सम अभूतरिपु बिमद बिरागी। लोभामरष हरष भय त्यागी।। कोमलचित दीनन्ह पर दाया। मन बच क्रम मम भगति अमाया।। सबहि मानप्रद आपु अमानी। भरत प्रान सम मम ते प्रानी।। बिगत काम मम नाम परायन। सांति बिरति बिनती मुदितायन।। सीतलता सरलता मयत्री। द्विज पद प्रीति धर्म जनयत्री।। ए सब लच्छन बसहिं जासु उर। जानेहु तात संत संतत फुर।। सम दम नियम नीति नहिं डोलहिं। परुष बचन कबहूँ नहिं बोलहिं।। दो0-निंदा अस्तुति उभय सम ममता मम पद कंज। ते सज्जन मम प्रानप्रिय गुन मंदिर सुख पुंज।।38।। उत्तरकांड, 38 वे दोहे के बाद, 1 से 4 चौपाईया मे - सनहु असंतन्ह केर सुभाऊ। भूलेहुँ संगति करिअ न काऊ।। तिन्ह कर संग सदा दुखदाई। जिमि कलपहि घालइ हरहाई।। खलन्ह हृदयँ अति ताप बिसेषी। जरहिं सदा पर संपति देखी।। जहँ कहुँ निंदा सुनहिं पराई। हरषहिं मनहुँ परी निधि पाई।। काम क्रोध मद लोभ परायन। निर्दय कपटी कुटिल मलायन।। बयरु अकारन सब काहू सों। जो कर हित अनहित ताहू सों।। झूठइ लेना झूठइ देना। झूठइ भोजन झूठ चबेना।। बोलहिं मधुर बचन जिमि मोरा। खाइ महा अति हृदय कठोरा।। उत्तरकांड, 39 दोहा, 39 वे दोहे के बाद, 1 से 4 चौपाईया मे - दो0-पर द्रोही पर दार रत पर धन पर अपबाद। ते नर पाँवर पापमय देह धरें मनुजाद।।39।। लोभइ ओढ़न लोभइ डासन। सिस्त्रोदर पर जमपुर त्रास न।। काहू की जौं सुनहिं बड़ाई। स्वास लेहिं जनु जूड़ी आई।। जब काहू कै देखहिं बिपती। सुखी भए मानहुँ जग नृपती।। स्वारथ रत परिवार बिरोधी। लंपट काम लोभ अति क्रोधी।। मातु पिता गुर बिप्र न मानहिं। आपु गए अरु घालहिं आनहिं।। करहिं मोह बस द्रोह परावा। संत संग हरि कथा न भावा।। अवगुन सिंधु मंदमति कामी। बेद बिदूषक परधन स्वामी।। बिप्र द्रोह पर द्रोह बिसेषा। दंभ कपट जियँ धरें सुबेषा।। In Ram Charitra Manas, Sage Valmiki ji says to Sri Ram that Sri Ram along with Ma Sita and Sh. Laxman, (should) abide in hearts of those who following characteristics:
References: Ram Charitra Manas written by Tulsidas: “अयोध्याकांड, 127 वे दोहा के बाद 3,4 चौपाई - भरहिं निरंतर होहिं न पूरे। तिन्ह के हिय तुम्ह कहुँ गृह रूरे।। लोचन चातक जिन्ह करि राखे। रहहिं दरस जलधर अभिलाषे।। निदरहिं सरित सिंधु सर भारी। रूप बिंदु जल होहिं सुखारी।। तिन्ह के हृदय सदन सुखदायक। बसहु बंधु सिय सह रघुनायक।।, अयोध्याकांड,128 वे दोहा के बाद 1,2,3,4 चौपाई - प्रभु प्रसाद सुचि सुभग सुबासा। सादर जासु लहइ नित नासा।। तुम्हहि निबेदित भोजन करहीं। प्रभु प्रसाद पट भूषन धरहीं।। सीस नवहिं सुर गुरु द्विज देखी। प्रीति सहित करि बिनय बिसेषी।। कर नित करहिं राम पद पूजा। राम भरोस हृदयँ नहि दूजा।। चरन राम तीरथ चलि जाहीं। राम बसहु तिन्ह के मन माहीं।। मंत्रराजु नित जपहिं तुम्हारा। पूजहिं तुम्हहि सहित परिवारा।। तरपन होम करहिं बिधि नाना। बिप्र जेवाँइ देहिं बहु दाना।। तुम्ह तें अधिक गुरहि जियँ जानी। सकल भायँ सेवहिं सनमानी।।, अयोध्याकांड, 129 वे दोहा के बाद 1,2,3,4 चौपाई - काम कोह मद मान न मोहा। लोभ न छोभ न राग न द्रोहा।। जिन्ह कें कपट दंभ नहिं माया। तिन्ह कें हृदय बसहु रघुराया।। सब के प्रिय सब के हितकारी। दुख सुख सरिस प्रसंसा गारी।। कहहिं सत्य प्रिय बचन बिचारी। जागत सोवत सरन तुम्हारी।। तुम्हहि छाड़ि गति दूसरि नाहीं। राम बसहु तिन्ह के मन माहीं।। जननी सम जानहिं परनारी। धनु पराव बिष तें बिष भारी।। जे हरषहिं पर संपति देखी। दुखित होहिं पर बिपति बिसेषी।। जिन्हहि राम तुम्ह प्रानपिआरे। तिन्ह के मन सुभ सदन तुम्हारे।।, अयोध्याकांड, 130 वे दोहा के बाद 1,2,3,4 चौपाई - अवगुन तजि सब के गुन गहहीं। बिप्र धेनु हित संकट सहहीं।। नीति निपुन जिन्ह कइ जग लीका। घर तुम्हार तिन्ह कर मनु नीका।। गुन तुम्हार समुझइ निज दोसा। जेहि सब भाँति तुम्हार भरोसा।। राम भगत प्रिय लागहिं जेही। तेहि उर बसहु सहित बैदेही।। जाति पाँति धनु धरम बड़ाई। प्रिय परिवार सदन सुखदाई।। सब तजि तुम्हहि रहइ उर लाई। तेहि के हृदयँ रहहु रघुराई।। सरगु नरकु अपबरगु समाना। जहँ तहँ देख धरें धनु बाना।। करम बचन मन राउर चेरा। राम करहु तेहि कें उर डेरा।।, अयोध्याकांड,131 वा दोहा - जाहि न चाहिअ कबहुँ कछु तुम्ह सन सहज सनेहु। बसहु निरंतर तासु मन सो राउर निज गेहु।।)” What is Bhakti:
In Ram Charitra Manas, Sri Ram has explained to all Ajodhya citizens about Bhakti as under:
Bhakti v/s Gyan: Sri Ram ji further explained to Laxman ji near Godavari river in Parnkuti on Bhakti as under
Importance of Bhakti: In Balkand, importance of Bhakti is well explained as under:
References: Ram Charitra Manas written by Tulsidas:
उत्तरकांड, 45 वे दोहे के बाद, 3 से 4 चौपाईया मे - बैर न बिग्रह आस न त्रासा। सुखमय ताहि सदा सब आसा।। अनारंभ अनिकेत अमानी। अनघ अरोष दच्छ बिग्यानी। प्रीति सदा सज्जन संसर्गा। तृन सम बिषय स्वर्ग अपबर्गा।। भगति पच्छ हठ नहिं सठताई। दुष्ट तर्क सब दूरि बहाई।। उत्तरकांड, 61 वा दोहा - बिनु सतसंग न हरि कथा तेहि बिनु मोह न भाग। मोह गएँ बिनु राम पद होइ न दृढ़ अनुराग।।
In Ram Charitra Manas, Sri Ram ji has explained to Laxman ji near Godavari river in Parnkuti about Maya, Gyan, Vairagia, difference between God & Soul. Sri Ram has described nine forms of Bhakti as under: Nine forms of Bhakti viz. Sravana (श्रवण, listening of god’s praises & stories), kirtana (कीर्तन, chanting of god’s praises & stories), Smarana (स्मरण, fixing of one’s thoughts in god), Padasevana (पादसेवा, adoring god’s feet), Archana (अर्चना, worshipping god’s image), Vandana (वंदना, making obeisance to god), Dasya (दास्य, offering devout services to god), Sakhya (सखाया, cultivating friendship with god), Atmanivedana (आत्मनिवेदन, offering oneself to god). Sri Ram ji has further explained nine forms of Bhakti to Shabri when he visits her ashram in dense forest of south. The description of navdha bhakti is given as under:
Reference: Ram Charitra Manas written by Tulsidas: अरण्यकांड, 15 वे दोहे के बाद, 4 से 6 चौपाईया मे - एहि कर फल पुनि बिषय बिरागा। तब मम धर्म उपज अनुरागा।। श्रवनादिक नव भक्ति दृढ़ाहीं। मम लीला रति अति मन माहीं।। संत चरन पंकज अति प्रेमा। मन क्रम बचन भजन दृढ़ नेमा।। गुरु पितु मातु बंधु पति देवा। सब मोहि कहँ जाने दृढ़ सेवा।। मम गुन गावत पुलक सरीरा। गदगद गिरा नयन बह नीरा।। काम आदि मद दंभ न जाकें। तात निरंतर बस मैं ताकें।। अरण्यकांड, 34 वे दोहे के बाद, 4 चौपाई मे, 35 दोहा, 35 वे दोहे के बाद, 1 से 4 चौपाईया मे - नवधा भगति कहउँ तोहि पाहीं। सावधान सुनु धरु मन माहीं।। प्रथम भगति संतन्ह कर संगा। दूसरि रति मम कथा प्रसंगा।। गुर पद पंकज सेवा तीसरि भगति अमान। चौथि भगति मम गुन गन करइ कपट तजि गान।।35।। मंत्र जाप मम दृढ़ बिस्वासा। पंचम भजन सो बेद प्रकासा।। छठ दम सील बिरति बहु करमा। निरत निरंतर सज्जन धरमा।। सातवँ सम मोहि मय जग देखा। मोतें संत अधिक करि लेखा।। आठवँ जथालाभ संतोषा। सपनेहुँ नहिं देखइ परदोषा।। नवम सरल सब सन छलहीना। मम भरोस हियँ हरष न दीना।। नव महुँ एकउ जिन्ह के होई। नारि पुरुष सचराचर कोई।। सोइ अतिसय प्रिय भामिनि मोरे। सकल प्रकार भगति दृढ़ तोरें।। जोगि बृंद दुरलभ गति जोई। तो कहुँ आजु सुलभ भइ सोई।। मम दरसन फल परम अनूपा। जीव पाव निज सहज सरूपा।। जनकसुता कइ सुधि भामिनी। जानहि कहु करिबरगामिनी।। पंपा सरहि जाहु रघुराई। तहँ होइहि सुग्रीव मिताई।। सो सब कहिहि देव रघुबीरा। जानतहूँ पूछहु मतिधीरा।। बार बार प्रभु पद सिरु नाई। प्रेम सहित सब कथा सुनाई।।
Gyan (spiritual wisdom) is one which is free from all flaws such as self-pride and sees supreme spirit equally in all. Srimad Bhagavadgita enumerates the 18 characteristics which make for spiritual wisdom. They are:
Kakabhusundi ji has further explained to Gaurda as under:
Reference:
उत्तरकांड, 89 दोहा और 89 वे दोहे के बाद, 1 से 4 चौपाईया मे, 90 दोहा - सो0-बिनु गुर होइ कि ग्यान ग्यान कि होइ बिराग बिनु।गावहिं बेद पुरान सुख कि लहिअ हरि भगति बिनु।।89(क)।। कोउ बिश्राम कि पाव तात सहज संतोष बिनु। चलै कि जल बिनु नाव कोटि जतन पचि पचि मरिअ।।89(ख)।। बिनु संतोष न काम नसाहीं। काम अछत सुख सपनेहुँ नाहीं।। राम भजन बिनु मिटहिं कि कामा। थल बिहीन तरु कबहुँ कि जामा।। बिनु बिग्यान कि समता आवइ। कोउ अवकास कि नभ बिनु पावइ।। श्रद्धा बिना धर्म नहिं होई। बिनु महि गंध कि पावइ कोई।। बिनु तप तेज कि कर बिस्तारा। जल बिनु रस कि होइ संसारा।। सील कि मिल बिनु बुध सेवकाई। जिमि बिनु तेज न रूप गोसाई।। निज सुख बिनु मन होइ कि थीरा। परस कि होइ बिहीन समीरा।। कवनिउ सिद्धि कि बिनु बिस्वासा। बिनु हरि भजन न भव भय नासा।। दो0-बिनु बिस्वास भगति नहिं तेहि बिनु द्रवहिं न रामु। राम कृपा बिनु सपनेहुँ जीव न लह बिश्रामु।।90(क)।। सो0-अस बिचारि मतिधीर तजि कुतर्क संसय सकल। भजहु राम रघुबीर करुनाकर सुंदर सुखद।।90(ख)।।) उत्तरकांड, 103 (खा) दोहा - प्रगट चारि पद धर्म के कलिल महुँ एक प्रधान। जेन केन बिधि दीन्हें दान करइ कल्यान।। In Ram Charitra Manas, Sri Ram explained to Narad ji when he meets in dense forest of south, about Gyani (who has spiritual wisdom) and Bhakt (devotee), as under: (अरण्यकांड, 42 वे दोहे के बाद, 4 से 5 चौपाईया मे, 35 दोहा, 35 वे दोहे के बाद, 1 से 4 चौपाईया मे)
Sri Ram explains to Kakabhusundi ji about best way reach him as under:
Reference: Ram Charitra Manas written by Tulsidas: उत्तरकांड, 85 वे दोहे के बाद, 2 से 5 चौपाईया मे - मम माया संभव संसारा। जीव चराचर बिबिधि प्रकारा।। सब मम प्रिय सब मम उपजाए। सब ते अधिक मनुज मोहि भाए।। तिन्ह महँ द्विज द्विज महँ श्रुतिधारी। तिन्ह महुँ निगम धरम अनुसारी।। तिन्ह महँ प्रिय बिरक्त पुनि ग्यानी। ग्यानिहु ते अति प्रिय बिग्यानी।। तिन्ह ते पुनि मोहि प्रिय निज दासा। जेहि गति मोरि न दूसरि आसा।। पुनि पुनि सत्य कहउँ तोहि पाहीं। मोहि सेवक सम प्रिय कोउ नाहीं।। भगति हीन बिरंचि किन होई। सब जीवहु सम प्रिय मोहि सोई।। भगतिवंत अति नीचउ प्रानी। मोहि प्रानप्रिय असि मम बानी।। In Ram Charitra Manas, Sri Ram ji explained to Laxman ji near Godavavri river in Parnkuti about Maya, Gyan, Vairagia, difference between God & Soul. Description of Maya is as under:
Reference: Ram Charitra Manas written by Tulsidas: अरण्यकांड, 14, 1 से 3 चौपाईया मे - थोरेहि महँ सब कहउँ बुझाई। सुनहु तात मति मन चित लाई।। मैं अरु मोर तोर तैं माया। जेहिं बस कीन्हे जीव निकाया।। गो गोचर जहँ लगि मन जाई। सो सब माया जानेहु भाई।। तेहि कर भेद सुनहु तुम्ह सोऊ। बिद्या अपर अबिद्या दोऊ।। एक दुष्ट अतिसय दुखरूपा। जा बस जीव परा भवकूपा।। एक रचइ जग गुन बस जाकें। प्रभु प्रेरित नहिं निज बल ताकें।। In Ram Charitra Manas, in Ajodhya Kand, Saint Tulsidas ji has explained about the attributes of person who has bliss in psyche (चित्त) as under:
Reference: Ram Charitra Manas written by Tulsidas: अयोध्याकांड, 234 वे दोहा के बाद, 4 चौपाई - भट जम नियम सैल रजधानी। सांति सुमति सुचि सुंदर रानी।। सकल अंग संपन्न सुराऊ। राम चरन आश्रित चित चाऊ।। |
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April 2020
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