Gyan (spiritual wisdom) is one which is free from all flaws such as self-pride and sees supreme spirit equally in all. Srimad Bhagavadgita enumerates the 18 characteristics which make for spiritual wisdom. They are:
Kakabhusundi ji has further explained to Gaurda as under:
Reference:
उत्तरकांड, 89 दोहा और 89 वे दोहे के बाद, 1 से 4 चौपाईया मे, 90 दोहा - सो0-बिनु गुर होइ कि ग्यान ग्यान कि होइ बिराग बिनु।गावहिं बेद पुरान सुख कि लहिअ हरि भगति बिनु।।89(क)।। कोउ बिश्राम कि पाव तात सहज संतोष बिनु। चलै कि जल बिनु नाव कोटि जतन पचि पचि मरिअ।।89(ख)।। बिनु संतोष न काम नसाहीं। काम अछत सुख सपनेहुँ नाहीं।। राम भजन बिनु मिटहिं कि कामा। थल बिहीन तरु कबहुँ कि जामा।। बिनु बिग्यान कि समता आवइ। कोउ अवकास कि नभ बिनु पावइ।। श्रद्धा बिना धर्म नहिं होई। बिनु महि गंध कि पावइ कोई।। बिनु तप तेज कि कर बिस्तारा। जल बिनु रस कि होइ संसारा।। सील कि मिल बिनु बुध सेवकाई। जिमि बिनु तेज न रूप गोसाई।। निज सुख बिनु मन होइ कि थीरा। परस कि होइ बिहीन समीरा।। कवनिउ सिद्धि कि बिनु बिस्वासा। बिनु हरि भजन न भव भय नासा।। दो0-बिनु बिस्वास भगति नहिं तेहि बिनु द्रवहिं न रामु। राम कृपा बिनु सपनेहुँ जीव न लह बिश्रामु।।90(क)।। सो0-अस बिचारि मतिधीर तजि कुतर्क संसय सकल। भजहु राम रघुबीर करुनाकर सुंदर सुखद।।90(ख)।।) उत्तरकांड, 103 (खा) दोहा - प्रगट चारि पद धर्म के कलिल महुँ एक प्रधान। जेन केन बिधि दीन्हें दान करइ कल्यान।।
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April 2020
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