In Ram Charitra Manas, Sri Ram explained to Narad ji when he meets in dense forest of south, about Gyani (who has spiritual wisdom) and Bhakt (devotee), as under: (अरण्यकांड, 42 वे दोहे के बाद, 4 से 5 चौपाईया मे, 35 दोहा, 35 वे दोहे के बाद, 1 से 4 चौपाईया मे)
Sri Ram explains to Kakabhusundi ji about best way reach him as under:
Reference: Ram Charitra Manas written by Tulsidas: उत्तरकांड, 85 वे दोहे के बाद, 2 से 5 चौपाईया मे - मम माया संभव संसारा। जीव चराचर बिबिधि प्रकारा।। सब मम प्रिय सब मम उपजाए। सब ते अधिक मनुज मोहि भाए।। तिन्ह महँ द्विज द्विज महँ श्रुतिधारी। तिन्ह महुँ निगम धरम अनुसारी।। तिन्ह महँ प्रिय बिरक्त पुनि ग्यानी। ग्यानिहु ते अति प्रिय बिग्यानी।। तिन्ह ते पुनि मोहि प्रिय निज दासा। जेहि गति मोरि न दूसरि आसा।। पुनि पुनि सत्य कहउँ तोहि पाहीं। मोहि सेवक सम प्रिय कोउ नाहीं।। भगति हीन बिरंचि किन होई। सब जीवहु सम प्रिय मोहि सोई।। भगतिवंत अति नीचउ प्रानी। मोहि प्रानप्रिय असि मम बानी।।
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In Ram Charitra Manas, Sri Ram ji explained to Laxman ji near Godavavri river in Parnkuti about Maya, Gyan, Vairagia, difference between God & Soul. Description of Maya is as under:
Reference: Ram Charitra Manas written by Tulsidas: अरण्यकांड, 14, 1 से 3 चौपाईया मे - थोरेहि महँ सब कहउँ बुझाई। सुनहु तात मति मन चित लाई।। मैं अरु मोर तोर तैं माया। जेहिं बस कीन्हे जीव निकाया।। गो गोचर जहँ लगि मन जाई। सो सब माया जानेहु भाई।। तेहि कर भेद सुनहु तुम्ह सोऊ। बिद्या अपर अबिद्या दोऊ।। एक दुष्ट अतिसय दुखरूपा। जा बस जीव परा भवकूपा।। एक रचइ जग गुन बस जाकें। प्रभु प्रेरित नहिं निज बल ताकें।। In Ram Charitra Manas, in Ajodhya Kand, Saint Tulsidas ji has explained about the attributes of person who has bliss in psyche (चित्त) as under:
Reference: Ram Charitra Manas written by Tulsidas: अयोध्याकांड, 234 वे दोहा के बाद, 4 चौपाई - भट जम नियम सैल रजधानी। सांति सुमति सुचि सुंदर रानी।। सकल अंग संपन्न सुराऊ। राम चरन आश्रित चित चाऊ।। |
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April 2020
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