In Ram Charitra Manas, Sri Ram ji has explained to Laxman ji near Godavari river in Parnkuti about Maya, Gyan, Vairagia, difference between God & Soul. Sri Ram has described nine forms of Bhakti as under: Nine forms of Bhakti viz. Sravana (श्रवण, listening of god’s praises & stories), kirtana (कीर्तन, chanting of god’s praises & stories), Smarana (स्मरण, fixing of one’s thoughts in god), Padasevana (पादसेवा, adoring god’s feet), Archana (अर्चना, worshipping god’s image), Vandana (वंदना, making obeisance to god), Dasya (दास्य, offering devout services to god), Sakhya (सखाया, cultivating friendship with god), Atmanivedana (आत्मनिवेदन, offering oneself to god). Sri Ram ji has further explained nine forms of Bhakti to Shabri when he visits her ashram in dense forest of south. The description of navdha bhakti is given as under:
Reference: Ram Charitra Manas written by Tulsidas: अरण्यकांड, 15 वे दोहे के बाद, 4 से 6 चौपाईया मे - एहि कर फल पुनि बिषय बिरागा। तब मम धर्म उपज अनुरागा।। श्रवनादिक नव भक्ति दृढ़ाहीं। मम लीला रति अति मन माहीं।। संत चरन पंकज अति प्रेमा। मन क्रम बचन भजन दृढ़ नेमा।। गुरु पितु मातु बंधु पति देवा। सब मोहि कहँ जाने दृढ़ सेवा।। मम गुन गावत पुलक सरीरा। गदगद गिरा नयन बह नीरा।। काम आदि मद दंभ न जाकें। तात निरंतर बस मैं ताकें।। अरण्यकांड, 34 वे दोहे के बाद, 4 चौपाई मे, 35 दोहा, 35 वे दोहे के बाद, 1 से 4 चौपाईया मे - नवधा भगति कहउँ तोहि पाहीं। सावधान सुनु धरु मन माहीं।। प्रथम भगति संतन्ह कर संगा। दूसरि रति मम कथा प्रसंगा।। गुर पद पंकज सेवा तीसरि भगति अमान। चौथि भगति मम गुन गन करइ कपट तजि गान।।35।। मंत्र जाप मम दृढ़ बिस्वासा। पंचम भजन सो बेद प्रकासा।। छठ दम सील बिरति बहु करमा। निरत निरंतर सज्जन धरमा।। सातवँ सम मोहि मय जग देखा। मोतें संत अधिक करि लेखा।। आठवँ जथालाभ संतोषा। सपनेहुँ नहिं देखइ परदोषा।। नवम सरल सब सन छलहीना। मम भरोस हियँ हरष न दीना।। नव महुँ एकउ जिन्ह के होई। नारि पुरुष सचराचर कोई।। सोइ अतिसय प्रिय भामिनि मोरे। सकल प्रकार भगति दृढ़ तोरें।। जोगि बृंद दुरलभ गति जोई। तो कहुँ आजु सुलभ भइ सोई।। मम दरसन फल परम अनूपा। जीव पाव निज सहज सरूपा।। जनकसुता कइ सुधि भामिनी। जानहि कहु करिबरगामिनी।। पंपा सरहि जाहु रघुराई। तहँ होइहि सुग्रीव मिताई।। सो सब कहिहि देव रघुबीरा। जानतहूँ पूछहु मतिधीरा।। बार बार प्रभु पद सिरु नाई। प्रेम सहित सब कथा सुनाई।।
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April 2020
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